कुछ दशक पहले तक, जबकि विश्वभर में महायान बौद्धधर्म में रुचि बढ़ने लगी, उससे संबद्ध साहित्य तिब्बती और चीनी जैसी कुछ प्रतिष्ठित प्राचीन भाषाओं तक ही सीमित था । महापंडित राहुल सांकृत्यायन जैसे विद्वानों के प्रयासों के फलस्वरूप कुछ संस्कृत पाठ पाठकों के ध्यान में आए तो जरूर, पर वे अक्सर अशुद्ध तथा अपूर्ण रहा करते थे । इस स्थिति को देखकर कुछ समसामयिक विद्वानों ने एक महत्त्वाकांक्षी योजना बनाई । इस योजना का मुख्य उद्देश्य था - उपलब्ध संस्कृत पाठों के प्रामाणिक संस्करण तैयार करना, आधे-अधूरे पाठों को उनके तिब्बती अनुवादों के आधार पर पुनःस्थापित करना, इन भाषाओं में उपलब्ध सामग्री पर आधारित उच्च-स्तरीय अनुसंधान को प्रोत्साहन देना, तथा तिब्बती और संस्कृत जैसी प्रतिष्ठित भाषाओं में उपलब्ध बौद्ध साहित्य हिंदी और अँग्रेजी जैसी आधुनिक भाषाओं में सुलभ कराना । इस महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम को पूरा करने के लिए अलग-अलग प्रकार के शब्द कोशों की जरूरत पड़ने लगी । केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान ने एक बृहत शब्दकोश प्रकल्प का बीड़ा उठाया । इस प्रकल्प में दो प्रकार के (साधारण और विशिष्ट) शब्दकोश बनाने का प्रावधान है ।