प्रस्तावना

दुर्लभ बौद्ध ग्रंथ विभाग ( दु. बौ. ग्रं. पु. वि.) मुख्यतः, अप्रकाशित बौद्ध तांत्रिक ग्रंथों की संस्कृत पांडुलिपियों के आधार पर नेवारी (तथा भुजिमोल, पंलमोचु जैसे रूपों) जैसी प्राचीन लिपियों और रंजना, कुटिला, बर्तुला, मागधी, प्राचीन देवनागरी, प्राचीन बाङला, मैथिली आदि लिपियों के आधार पर समालोचनात्मक आवृत्तियाँ प्रकाशित करने के लिए समर्पित हैं । संस्कृत पाठों का समालोचनात्मक संपादन करते समय पांडुलिपियों का मिलान किया जाता है तथा संस्कृत पाठों की चार पाठों में उपलब्ध कग्युर तथा तंग्युर के उपलब्ध प्रतिष्ठित तिब्बती अनुवादों के समालोचनात्मक संस्करणों के साथ तुलना कर उनके द्वारा मूल पाठों की पुष्टि की जाती है । इस विभाग के संस्थापक तथा प्रथम निदेशक थे- बौद्ध विद्या के ज्येष्ठ विद्वान् प्रो. जगन्नाथ उपाध्याय । यह विभाग बौद्ध तांत्रिक अध्ययन को समर्पित “धीः” नामक एक शोध-पत्रिका भी प्रकाशित करता है । अब तक इस पत्रिका के 52 खण्ड प्रकाशित हो चुके हैं। दु. बौ. ग्रं. वि. संस्कृत पांडुलिपियों के नियमित सर्वेक्षण संचालित करता है तथा पाठों को सम्पादित करने के लिए उनकी प्रतियाँ प्राप्त करता है । काठमांडू (नेपाल), कोलकाता, बड़ौदा तथा भारत के अन्य स्थानों एवं विदेशों से भी प्राप्त किए बौद्ध तांत्रिक पाठों की पांडुलिपियों की प्रतियों का संभवतः सबसे अधिक समृद्ध संग्रह, दु. बौ ग्रं. वि. के पास है । इस क्षेत्र के विद्वानों के सार्थक आदान- प्रदान के लिए गोष्ठियों तथा कार्यशालाओं का आयोजन भी दु. बौ. ग्रं. वि. करता है ।