केंद्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान में भोट ज्योतिष विद्या
विभाग की स्थापना 1993 में की गयी । इसका उद्देश्य है ज्योतिष विद्या की तिब्बती
परंपरा को बनाए रखना तथा उसकी अभिवृद्धि करना, ताकि यह विद्या अधिक समृद्ध बन सकें
।
तिब्बती ज्योतिष शास्त्र को तीन विभागों में बाँटा जा सकता है :
खगोलशास्त्र, भूत ज्योतिष, दिव्य-दर्शन तथा भविष्य-कथन । खगोल-शास्त्र तथा ज्योतिष
शास्त्र दोनों भारतीय, फ़ारसी, यूनानी तथा बौद्ध परंपराओं के संमिश्रण हैं। तिब्बती
ज्योतिष विद्या खगोलीय घटनाओं की गणना तथा विशदीकरण की प्राचीन कला है। तिब्बती
खगोल-विद्या व्यवस्था सृष्टि-विज्ञान का अध्ययन है । यह व्यवस्था कालचक्र-तंत्र पर
आधारित है । इसलिए कालचक्र-तंत्र की साधना के लिए खगोल-विद्या पर प्रभुत्व होना
योगियों को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है । भविष्य-कथन कुछ अलग प्रकार का है, यह महीने
के हर दिन के लिए एक अलग स्वर-वर्ण निर्धारित करता है । इस आधार पर वह जन्म, मृत्यु,
विवाह, दीर्घ व्याधि आदि पर होनेवाले प्रभाव का आकलन करता है ।
जन्म, मृत्यु, विवाह तथा यात्रा पर जाने के शुभ समय को तय करना
आदि अवसरों से जुड़े हुए स्त्री-पुरुषों के दैनंदिन जीवन में तिब्बती ज्योतिष
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।
इतिहास
बौद्ध धर्म का तिब्बत में प्रवेश होने से पहले, तिब्बती
ज्योतिष विद्या का आधार बोन धर्म था । बोन पाँच महाभूतों को मानता है और
ज्योतिष-कथन (भविष्य-कथन) की एक पद्धति का प्रयोग करता है ।
तिब्बती राजा नम्री सोङछ़ेने, महान् सोङछ़ेन ग्यांपो के पिता,
ने चार बुद्धिमान् युवा विद्वानों को ज्योतिष विद्या सीखने के लिए चीन भेजा ।
उन्होंने तिब्बती ज्योतिष में नये घटकों को प्रविष्ट किया । तथापि, उस समय लेखन
कला प्रचलित नहीं थी, इसलिए सारी जानकारी मौखिक परंपरा से सुरक्षित रखी गयी ।
7वीं शताब्दी में राजा सोंङछ़ेन ग्यांपो ने चीनी राजकुमारी कोङ्
जू से विवाह किया । कोङ् जू ने तिब्बत में अभिजात चीनी महाभौतिक ज्योतिष को
प्रविष्ट किया ।
सम्राट ट्रिसोङ् देछ़ेन के शासन-काल में तिब्बती वैद्यक,
ज्योतिष तथा बौद्ध धर्म चोटी पर पहुँच गये थे । इस कालावधि को तिब्बती इतिहास का
सुनहरा काल कहा जा सकता है । इस कालखंड में भारतीय तथा तिब्बती विद्वानों ने अपने
सामने रखे हुए उच्च मानक शतकों तक बरक़रार रहे ।
11वीं शती में श्रीकालचक तंत्र का संस्कृत से तिब्बती में
अनुवाद हुआ । यह बौद्ध तंत्र ग्रंथ आधुनिक तिब्बती ज्योतिष का आधार बना और इसके
परिणाम स्वरूप तिब्बती पंचांग बना ।
17वीं शती में परम पावन पंचम दलाईलामा, ङवङ् लोब्सङ् ग्याछो के
नेतृत्व में तिब्बती ज्योतिष विद्या अपने पूर्व गौरव को प्राप्त हुई । उनके
राज-प्रतिनिधि, देसी संग्ये ग्याछ़ो ने तिब्बती ज्योतिष विद्या का संकलन किया, यह
पुस्तक तिब्बती ज्योतिष-विदों के लिए एक उपयोगी निर्देशन पुस्तिका रही है ।
अनुसंधान प्रकल्प
- तिब्बती तथा भारतीय पंचांगों की घनिष्टता के आधार पर एक आधुनिक पंचांग कि
निर्मित करने पर अनुसंधान ।
- कग्युर, तंग्युर तथा सुङ्बुम् से तिब्बती ज्योतिर्विद्या से संबंधित पाठों लका
संकलन कर अध्येताओं तथा विद्वानों को उपलब्ध कराना ।
शैक्षणिक सम्बन्ध
इस विद्या-विभाग के अध्यापक स्मिथ कॉलेज, यू एस ए तथा तस्मानिया युनिवर्सिटी,
ऑस्ट्रेलिया से आनेवाले आदान-प्रदान कार्यक्रम के विद्यार्थियों को अध्यापन में
शामिल कर लेते है ।
प्राध्यापक-वृंद
Name |
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Shri Jampa Chhophel |
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Designation |
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Assistant Professor(HOD) |
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Name |
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Shri Tashi Tsering (J) |
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Designation |
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Associate Professor |
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